ज़िहाद के बारे में कुरान में क्या लिखा है ? The Holy Quran about Jihad

दोस्तों, इस पोस्ट में मैं आपको कुरान पाक की उन आयात की मालूमात देने वाला हूं, जिनमें ज़िहाद का जिक्र आया है। मैंने कुरान पाक से कुल 21 आयतों को नीचे लिखा है। ये सारे आयात मुखतलिफ सूरतों से लिए गए हैं। साथ ही साथ हमने इन आयात का हिन्दी तर्जुमा भी लिखा है ताकि आपको समझने में आसानी हो।


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ज़िहाद के बारे में कुरान में क्या लिखा है ? Quran On Jihad


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1. Surah Al-Baqarah


إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَٱلَّذِينَ هَاجَرُواْ وَجَـٰهَدُواْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ أُوْلَـٰٓٮِٕكَ يَرۡجُونَ رَحۡمَتَ ٱللَّهِ  ۚ  وَٱللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ


बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और ख़ुदा की राह में हिजरत की और जिहाद किया यही लोग रहमते ख़ुदा के उम्मीदवार हैं और ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है ।


2. Surah Aal-e-Imran


يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَأۡڪُلُواْ ٱلرِّبَوٰٓاْ أَضۡعَـٰفًا مُّضَـٰعَفَةً‌   ۖ   وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ


ऐ ईमानदारों सूद दनादन खाते न चले जाओ और ख़ुदा से डरो कि तुम छुटकारा पाओ ।


3. Surah Aal-e-Imran


أَمۡ حَسِبۡتُمۡ أَن تَدۡخُلُواْ ٱلۡجَنَّةَ وَلَمَّا يَعۡلَمِ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ جَـٰهَدُواْ مِنكُمۡ وَيَعۡلَمَ ٱلصَّـٰبِرِينَ


(मुसलमानों) क्या तुम ये समझते हो कि सब के सब बहिश्त में चले ही जाओगे और क्या ख़ुदा ने अभी तक तुममें से उन लोगों को भी नहीं पहचाना जिन्होंने जेहाद किया और जो लोग साबित क़दम रहे ।


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4. Surah An-Nisa


لَّا يَسۡتَوِى ٱلۡقَـٰعِدُونَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ غَيۡرُ أُوْلِى ٱلضَّرَرِ وَٱلۡمُجَـٰهِدُونَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ بِأَمۡوَٲلِهِمۡ وَأَنفُسِہِمۡ  ۚ  فَضَّلَ ٱللَّهُ ٱلۡمُجَـٰهِدِينَ بِأَمۡوَٲلِهِمۡ وَأَنفُسِہِمۡ عَلَى ٱلۡقَـٰعِدِينَ دَرَجَةً  ۚ  وَكُلاًّ وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلۡحُسۡنَىٰ  ۚ  وَفَضَّلَ ٱللَّهُ ٱلۡمُجَـٰهِدِينَ عَلَى ٱلۡقَـٰعِدِينَ أَجۡرًا عَظِيمًا


माज़ूर लोगों के सिवा जेहाद से मुंह छिपा के घर में बैठने वाले और ख़ुदा की राह में अपने जान व माल से जिहाद करने वाले हरगिज़ बराबर नहीं हो सकते (बल्कि) अपने जान व माल से जिहाद करने वालों को घर बैठे रहने वालें पर ख़ुदा ने दरजे के एतबार से बड़ी फ़ज़ीलत दी है (अगरचे) ख़ुदा ने सब ईमानदारों से (ख्वाह जिहाद करें या न करें) भलाई का वायदा कर लिया है मगर ग़ाज़ियों को खाना नशीनों पर अज़ीम सवाब के एतबार से ख़ुदा ने बड़ी फ़ज़ीलत दी है ।


5. Surah Al-Ma'idah


يَـٰٓأَيُّہَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَن يَرۡتَدَّ مِنكُمۡ عَن دِينِهِۦ فَسَوۡفَ يَأۡتِى ٱللَّهُ بِقَوۡمٍ يُحِبُّہُمۡ وَيُحِبُّونَهُ ۥۤ أَذِلَّةٍ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ أَعِزَّةٍ عَلَى ٱلۡكَـٰفِرِينَ يُجَـٰهِدُونَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَلَا يَخَافُونَ لَوۡمَةَ لَآٮِٕمٍ  ۚ  ذَٲلِكَ فَضۡلُ ٱللَّهِ يُؤۡتِيهِ مَن يَشَآءُ  ۚ  وَٱللَّهُ وَٲسِعٌ عَلِيمٌ


ऐ ईमानदारों तुममें से जो कोई अपने दीन से फिर जाएगा तो (कुछ परवाह नहीं फिर जाए) अनक़रीब ही ख़ुदा ऐसे लोगों को ज़ाहिर कर देगा जिन्हें ख़ुदा दोस्त रखता होगा और वह उसको दोस्त रखते होंगे ईमानदारों के साथ नर्म और मुन्किर (और) काफ़िरों के साथ सख्त ख़ुदा की राह में जेहाद करेंगे और किसी मलामत करने वाले की मलामत की कुछ परवाह न करेंगे ये ख़ुदा का फ़ज़ल (व करम) है वह जिसे चाहता है देता है और ख़ुदा तो बड़ी गुन्जाइश वाला वाक़िफ़कार है ।


6. Surah Al-Anfal


وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَهَاجَرُواْ وَجَـٰهَدُواْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِينَ ءَاوَواْ وَّنَصَرُوٓاْ أُوْلَـٰٓٮِٕكَ هُمُ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ حَقًّا  ۚ  لَّهُم مَّغۡفِرَةٌ وَرِزۡقٌ كَرِيمٌ


और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और हिजरत की और ख़ुदा की राह में लड़े भिड़े और जिन लोगों ने (ऐसे नाज़ुक वक्त में मुहाजिरीन को जगह ही और उनकी हर तरह ख़बरगीरी (मदद) की यही लोग सच्चे ईमानदार हैं उन्हीं के वास्ते मग़फिरत और इज्ज़त व आबरु वाली रोज़ी है ।


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7. Surah Al-Anfal 


وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مِنۢ بَعۡدُ وَهَاجَرُواْ وَجَـٰهَدُواْ مَعَكُمۡ فَأُوْلَـٰٓٮِٕكَ مِنكُمۡ  ۚ  وَأُوْلُواْ ٱلۡأَرۡحَامِ بَعۡضُہُمۡ أَوۡلَىٰ بِبَعۡضٍ فِى كِتَـٰبِ ٱللَّهِ   ۗ   إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَىۡءٍ عَلِيمُۢ 


और जिन लोगों ने (सुलह हुदैबिया के) बाद ईमान क़ुबूल किया और हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया वह लोग भी तुम्हीं में से हैं और साहबाने क़राबत ख़ुदा की किताब में बाहम एक दूसरे के (बनिस्बत औरों के) ज्यादा हक़दार हैं बेशक ख़ुदा हर चीज़ से ख़ूब वाक़िफ हैं ।


8. Surah At-Taubah 


أَمۡ حَسِبۡتُمۡ أَن تُتۡرَكُواْ وَلَمَّا يَعۡلَمِ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ جَـٰهَدُواْ مِنكُمۡ وَلَمۡ يَتَّخِذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلَا رَسُولِهِۦ وَلَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَلِيجَةً  ۚ  وَٱللَّهُ خَبِيرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ

 

क्या तुमने ये समझ लिया है कि तुम (यूं ही) छोड़ दिए जाओगे और अभी तक तो ख़ुदा ने उन लोगों को मुमताज़ किया ही नहीं जो तुम में (राहे ख़ुदा में) जिहाद करते हैं और ख़ुदा और उसके रसूल और मोमेनीन के सिवा किसी को अपना राज़दार दोस्त नहीं बनाते और जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उससे बाख़बर है ।


9. Surah At-Taubah


قُلۡ إِن كَانَ ءَابَآؤُكُمۡ وَأَبۡنَآؤُڪُمۡ وَإِخۡوَٲنُكُمۡ وَأَزۡوَٲجُكُمۡ وَعَشِيرَتُكُمۡ وَأَمۡوَٲلٌ ٱقۡتَرَفۡتُمُوهَا وَتِجَـٰرَةٌ تَخۡشَوۡنَ كَسَادَهَا وَمَسَـٰكِنُ تَرۡضَوۡنَهَآ أَحَبَّ إِلَيۡڪُم مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَجِهَادٍ فِى سَبِيلِهِۦ فَتَرَبَّصُواْ حَتَّىٰ يَأۡتِىَ ٱللَّهُ بِأَمۡرِهِۦ   ۗ   وَٱللَّهُ لَا يَہۡدِى ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡفَـٰسِقِينَ


(ऐ रसूल) तुम कह दो तुम्हारे बाप दादा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई बन्द और तुम्हारी बीबियाँ और तुम्हारे कुनबे वाले और वह माल जो तुमने कमा के रख छोड़ा हैं और वह तिजारत जिसके मन्द पड़ जाने का तुम्हें अन्देशा है और वह मकानात जिन्हें तुम पसन्द करते हो अगर तुम्हें ख़ुदा से और उसके रसूल से और उसकी राह में जिहाद करने से ज्यादा अज़ीज़ है तो तुम ज़रा ठहरो यहाँ तक कि ख़ुदा अपना हुक्म (अज़ाब) मौजूद करे और ख़ुदा नाफरमान लोगों की हिदायत नहीं करता ।


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10. Surah At-Taubah


لَا يَسۡتَـٔۡذِنُكَ ٱلَّذِينَ يُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأَخِرِ أَن يُجَـٰهِدُواْ بِأَمۡوَٲلِهِمۡ وَأَنفُسِہِمۡ   ۗ   وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِٱلۡمُتَّقِينَ


(ऐ रसूल) जो लोग (दिल से) ख़ुदा और रोज़े आख़िरत पर ईमान रखते हैं वह तो अपने माल से और अपनी जानों से जिहाद (न) करने की इजाज़त मांगने के नहीं (बल्कि वह ख़ुद जाएंगे) और ख़ुदा परहेज़गारों से खूब वाक़िफ है ।


11. Surah At-Taubah


يَـٰٓأَيُّہَا ٱلنَّبِىُّ جَـٰهِدِ ٱلۡڪُفَّارَ وَٱلۡمُنَـٰفِقِينَ وَٱغۡلُظۡ عَلَيۡہِمۡ  ۚ  وَمَأۡوَٮٰهُمۡ جَهَنَّمُ‌   ۖ   وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ


ऐ रसूल कुफ्फ़ार के साथ (तलवार से) और मुनाफिकों के साथ (ज़बान से) जिहाद करो और उन पर सख्ती करो और उनका ठिकाना तो जहन्नुम ही है और वह (क्या) बुरी जगह है ।


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12. Surah At-Taubah


وَإِذَآ أُنزِلَتۡ سُورَةٌ أَنۡ ءَامِنُواْ بِٱللَّهِ وَجَـٰهِدُواْ مَعَ رَسُولِهِ ٱسۡتَـٔۡذَنَكَ أُوْلُواْ ٱلطَّوۡلِ مِنۡهُمۡ وَقَالُواْ ذَرۡنَا نَكُن مَّعَ ٱلۡقَـٰعِدِينَ

 

और जब कोई सूरा इस बारे में नाज़िल हुआ कि ख़ुदा को मानों और उसके रसूल के साथ जिहाद करो तो जो उनमें से दौलत वाले हैं वह तुमसे इजाज़त मांगते हैं और कहते हैं कि हमें (यहीं छोड़ दीजिए) कि हम भी घर बैठने वालों के साथ (बैठे) रहें ।


13. Surah At-Taubah


لَـٰكِنِ ٱلرَّسُولُ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَعَهُ  ۥ جَـٰهَدُواْ بِأَمۡوَٲلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ  ۚ  وَأُوْلَـٰٓٮِٕكَ لَهُمُ ٱلۡخَيۡرَٲتُ‌   ۖ   وَأُوْلَـٰٓٮِٕكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ


मगर रसूल और जो लोग उनके साथ ईमान लाए हैं उन लोगों ने अपने अपने माल और अपनी अपनी जानों से जिहाद किया- यही वह लोग हैं जिनके लिए (हर तरह की) भलाइयाँ हैं और यही लोग कामयाब होने वाले हैं ।


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14. Surah Al-Hajj


وَجَـٰهِدُواْ فِى ٱللَّهِ حَقَّ جِهَادِهِۦ  ۚ  هُوَ ٱجۡتَبَٮٰكُمۡ وَمَا جَعَلَ عَلَيۡكُمۡ فِى ٱلدِّينِ مِنۡ حَرَجٍ  ۚ  مِّلَّةَ أَبِيكُمۡ إِبۡرَٲهِيمَ  ۚ  هُوَ سَمَّٮٰكُمُ ٱلۡمُسۡلِمِينَ مِن قَبۡلُ وَفِى هَـٰذَا لِيَكُونَ ٱلرَّسُولُ شَهِيدًا عَلَيۡكُمۡ وَتَكُونُواْ شُہَدَآءَ عَلَى ٱلنَّاسِ  ۚ  فَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱعۡتَصِمُواْ بِٱللَّهِ هُوَ مَوۡلَٮٰكُمۡ‌   ۖ   فَنِعۡمَ ٱلۡمَوۡلَىٰ وَنِعۡمَ ٱلنَّصِيرُ

 

ताकि तुम कामयाब हो और जो हक़ जिहाद करने का है खुदा की राह में जिहाद करो उसी नें तुमको बरगुज़ीदा किया और उमूरे दीन में तुम पर किसी तरह की सख्ती नहीं की तुम्हारे बाप इबराहीम ने मजहब को (तुम्हारा मज़हब बना दिया उसी (खुदा) ने तुम्हारा पहले ही से मुसलमान (फरमाबरदार बन्दे) नाम रखा और कुरान में भी (तो जिहाद करो) ताकि रसूल तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बने और तुम पाबन्दी से नामज़ पढ़ा करो और ज़कात देते रहो और खुदा ही (के एहकाम) को मज़बूत पकड़ो वही तुम्हारा सरपरस्त है तो क्या अच्छा सरपरस्त है और क्या अच्छा मददगार है ।


15. Surah Al-Furqan


فَلَا تُطِعِ ٱلۡڪَـٰفِرِينَ وَجَـٰهِدۡهُم بِهِۦ جِهَادًا ڪَبِيرًا


(तो ऐ रसूल) तुम काफिरों की इताअत न करना और उनसे कुरान के (दलाएल) से खूब लड़ों ।


16. Surah Al-'Ankabut 


وَمَن جَـٰهَدَ فَإِنَّمَا يُجَـٰهِدُ لِنَفۡسِهِۦۤ  ۚ  إِنَّ ٱللَّهَ لَغَنِىٌّ عَنِ ٱلۡعَـٰلَمِينَ


और जो शख्स (इबादत में) कोशिश करता है तो बस अपने ही वास्ते कोशिश करता है (क्योंकि) इसमें तो शक ही नहीं कि ख़ुदा सारे जहाँन (की इबादत) से बेनियाज़ है ।


17. Surah Al-'Ankabut 


وَٱلَّذِينَ جَـٰهَدُواْ فِينَا لَنَہۡدِيَنَّہُمۡ سُبُلَنَا  ۚ  وَإِنَّ ٱللَّهَ لَمَعَ ٱلۡمُحۡسِنِينَ

 

और जिन लोगों ने हमारी राह में जिहाद किया उन्हें हम ज़रुर अपनी राह की हिदायत करेंगे और इसमें शक नही कि ख़ुदा नेकोकारों का साथी है ।


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18. Surah Al-Hujurat


إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ ثُمَّ لَمۡ يَرۡتَابُواْ وَجَـٰهَدُواْ بِأَمۡوَٲلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ  ۚ  أُوْلَـٰٓٮِٕكَ هُمُ ٱلصَّـٰدِقُونَ


(सच्चे मोमिन) तो बस वही हैं जो ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाए फिर उन्होंने उसमें किसी तरह का शक़ शुबह न किया और अपने माल से और अपनी जानों से ख़ुदा की राह में जेहाद किया यही लोग (दावाए ईमान में) सच्चे हैं ।


19. Surah Al-Mumtahanah


يَـٰٓأَيُّہَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَتَّخِذُواْ عَدُوِّى وَعَدُوَّكُمۡ أَوۡلِيَآءَ تُلۡقُونَ إِلَيۡہِم بِٱلۡمَوَدَّةِ وَقَدۡ كَفَرُواْ بِمَا جَآءَكُم مِّنَ ٱلۡحَقِّ يُخۡرِجُونَ ٱلرَّسُولَ وَإِيَّاكُمۡ‌   ۙ أَن تُؤۡمِنُواْ بِٱللَّهِ رَبِّكُمۡ إِن كُنتُمۡ خَرَجۡتُمۡ جِهَـٰدًا فِى سَبِيلِى وَٱبۡتِغَآءَ مَرۡضَاتِى  ۚ  تُسِرُّونَ إِلَيۡہِم بِٱلۡمَوَدَّةِ وَأَنَا۟ أَعۡلَمُ بِمَآ أَخۡفَيۡتُمۡ وَمَآ أَعۡلَنتُمۡ  ۚ  وَمَن يَفۡعَلۡهُ مِنكُمۡ فَقَدۡ ضَلَّ سَوَآءَ ٱلسَّبِيلِ


ऐ ईमानदारों अगर तुम मेरी राह में जेहाद करने और मेरी ख़ुशनूदी की तमन्ना में (घर से) निकलते हो तो मेरे और अपने दुशमनों को दोस्त न बनाओ तुम उनके पास दोस्ती का पैग़ाम भेजते हो और जो दीन हक़ तुम्हारे पास आया है उससे वह लोग इनकार करते हैं वह लोग रसूल को और तुमको इस बात पर (घर से) निकालते हैं कि तुम अपने परवरदिगार ख़ुदा पर ईमान ले आए हो (और) तुम हो कि उनके पास छुप छुप के दोस्ती का पैग़ाम भेजते हो हालांकि तुम कुछ भी छुपा कर या बिल एलान करते हो मैं उससे ख़ूब वाक़िफ़ हूँ और तुममें से जो शख़्स ऐसा करे तो वह सीधी राह से यक़ीनन भटक गया ।


20. Surah As-Saff


تُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَتُجَـٰهِدُونَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ بِأَمۡوَٲلِكُمۡ وَأَنفُسِكُمۡ  ۚ  ذَٲلِكُمۡ خَيۡرٌ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ


(वह ये है कि) ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाओ और अपने माल व जान से ख़ुदा की राह में जेहाद करो अगर तुम समझो तो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है ।


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21. Surah At-Tahrim


يَـٰٓأَيُّہَا ٱلنَّبِىُّ جَـٰهِدِ ٱلۡڪُفَّارَ وَٱلۡمُنَـٰفِقِينَ وَٱغۡلُظۡ عَلَيۡہِمۡ  ۚ  وَمَأۡوَٮٰهُمۡ جَهَنَّمُ‌   ۖ   وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ


ऐ रसूल काफ़िरों और मुनाफ़िकों से जेहाद करो और उन पर सख्ती करो और उनका ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरा ठिकाना है ।

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