सज्दा सहव का बयान - Sajda Sahw
इस पोस्ट में मैं आपके साथ Sajda Sahw ka tarika in Hindi की मालूमात शेयर करने वाला हूं । उम्मीद है कि आपको ये पोस्ट जरूर पसन्द आएगी । इसे पूरा पढ़ें और अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें ।
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
सज्दा सहव किसे कहते हैं ? Sajda Sahw kya hai?
सहव का मतलब भूल जाने से हैं । भूले से कभी-कभी नमाज़ में कमी-ज़्यादती होकर नुकसान आ जाता है । कुछ नुक्सान ऐसे हैं कि उनको दूर करने के लिए नमाज़ के आख़िरी काअदा में दो सज्दे किये जाते हैं उनको सज्दा सहव (Sajda Sahw) कहते हैं ।
सज्दा सहव का तरीका - Sajda Sahw Karne ka tarika
- आखिरी कअदा में 'तशह्हुद' पढ़ने के बाद एक तरफ़ सलाम फेरिए ।
- फिर अल्लाहू अकबर कहते हुए सज्दे में जाइये । दो सज्दे पूरा कीजिए ।
- दो सज्दे करने के बाद सीधा बैठ जाइये ।
- अब फिर से तशह्हुद (अत्तहीय्यात) पढ़िए । फिर दुरूद शरीफ और दुआ ए कुनूत पढ़कर दोनों तरफ सलाम फेरिए ।
Sajda Sahw Ke Masail in Hindi
अगर सज्दा सहव के सलाम से पहले 'अत्तहीयात' और 'दुरूद शरीफ' और 'दुआ' भी पढ़ लें तो कैसा है ?
कुछ आलिमों ने इसे एहतियात के लिए पसंद किया है कि सज्दा सहव (Sajda Sahw) से पहले भी तशहहुद, दरूद और दुआ पढ़िए और सज्दा सहव के बाद भी तीनों चीजें पढ़िए । इस तरह पढ़ना ज़्यादा अच्छा है लेकिन न पढ़ने में भी नुकसान नहीं है । यानी सिर्फ अत्तहीय्यात पढ़कर भी सज्दा सहव (Sajda Sahw) किया जा सकता है ।
सज्दा सहव सिर्फ फर्ज़ नमाज़ों में वाजिब है या सब नमाज़ों में ?
तमाम नमाज़ों में सज्दा सहव (Sajda Sahw) का हुक्म एक जैसा है ।
अगर एक तरफ भी सलाम न फेरा और सज्दा सहव (Sajda Sahw) कर लिया तो क्या हुक्म है ?
ऐसे में नमाज़ तो हो जायेगी मगर जान - बूझकर ऐसा करना मकरूह तन्ज़ीही है ।
अगर दोनों सलामों के बाद सज्दा सहव किया, तो क्या हुक्म है ?
एक रिवायत के मुताबिक ये करना भी जाइज़ है । मगर क़वी बात यह है कि एक ही तरफ सलाम फेरिए , और अगर दोनों तरफ़ सलाम फेर दिया तो सज्दा सहव (Sajda Sahw) करने के बजाय उस नमाज़ को फिर से पढ़िए ।
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सज्दा सहव (Sajda Sahw) किन चीजों से वाजिब होता है ?
- नमाज़ में किसी वाजिब के छूट जाने से
- वाजिब में देर हो जाने से
- किसी फर्ज़ में देर हो जाने से
- किसी फ़र्ज़ को मुकद्दम कर देने से
- किसी फ़र्ज़ को दो बार कर देने से (जैसे दो बार रुकू कर लिये) ,
- किसी वाजिब की हालत बदल देने से
- इन सब चीजों से सज्दा सहव (Sajda Sahw) वाजिब हो जाता है ।
ये बातें जिनको भूलकर करने से सज्दा सहव (Sajda Sahw) वाजिब हो जाता है अगर इरादे से की जायें तो क्या हुक्म है ?
अगर ये गलतियां इरादे से की जाए । तो सज्दा सहव (Sajda Sahw) करने से नुक्सान पूरा नहीं होता बल्कि नमाज़ को लौटा वाजिब होता है ।
अगर एक नमाज़ में कई ऐसी बातें हो जाये जिनमें से हर एक पर सज्दा सहव (Sajda Sahw) वाजिब हो जाता है तो कितने सज्दे करें ?
सिर्फ एक बार , दो सज्दा सहव (Sajda Sahw) कर लेना काफी है ।
किरअत में क्या-क्या अदल-बदल हो जाने से सज्दा सहव (Sajda Sahw) वाजिब होता है ?
- फर्ज़ नमाज़ की पहली रकात या .. दूसरी रकात या इन दोनों में वाजिब या सुन्नत या नफ़िल नमाज़ों की किसी एक या ज़्यादा रकातों में सूरह फ़ातिहा छूट जाने से
- इन्हीं सारी रकातों में पूरी 'सूरह फातिहा' या उसके ज़्यादा हिस्से को दो बार पढ़ जाने से
- 'सूरह फातिहा' से पहले सूरह पढ़ जाने से
- फ़र्ज़ नमाज़ की तीसरी और चौथी रकातों के सिवा हर नमाज़ की (फर्ज़ हो या वाजिब या सुन्नत या नफ़िल) किसी रकात में सूरह छूट जाने से
इन बातों के होने पर सज्दा सहव (Sajda Sahw) वाजिब हो जाता है । लेकिन शर्त यह है कि ये सारी बातें भूल से हुई हों ।
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अगर भूल से नमाज़ के हिस्सों को अदा न करे तो सज्दा सहव (Sajda Sahw) वाजिब होगा या नहीं ?
ऐसे में सज्दा सहव (Sajda Sahw) करना वाजिब हो जाता है ।
अगर कअदा ऊला भूल जाये तो क्या हुक्म है ?
अगर भूल से उठने लगें तो जब तक बैठने के करीब हो बैठ जाये , और सज्दा सहव (Sajda Sahw) न करे । लेकिन अगर खड़े होने के करीब हो जाये तो कअदा को छोड़ दे और खड़ा हो जाये । आखिर में सज्दा सहव (Sajda Sahw) कर ले, नमाज़ हो जायेगी ।
और किन-किन बातों से सहव वाजिब होता है ?
- दो बार रूकू कर लेने से
- तीन सज्दे कर लेने से
- पहला कअदा या आख़री कअदा में 'तशहहुद' छुट जाने से
- पहले क़अदे में ' तशहुद ' के बाद ' अल्लाहुम्म सल्लि अला मुहम्मदिन ' तक ' दरूद ' पढ़ने से या इतनी देर ख़ामोश बैठे रहने से
- जेहरी नमाज़ों में इमाम के आहिस्ता पढ़ने से
- सिर्री नमाज़ों में इमाम के 'ज़हर' करने (आवाज़ से पढ़ने) से सज्दा सहव (Sajda Sahw) वाजिब होता है । इस शर्त के साथ कि ये सारी बातें भूल से हुई हों ।
अगर इमाम के पीछे मुकतदी से कुछ सहव (भूल) हो जाये तो क्या करे ?
मुक़तदी के जिम्मे अपनी भूल से सज्दा सहव (Sajda Sahw) वाजिब नहीं होता ।
मस्बूक को अपनी बाकी नमाज़ पूरी करने के दौरान भूल हो जाए तो क्या करें ?
इस सूरह में अपनी नमाज़ के आखिरी कअदा में सज्दा सहव (Sajda Sahw) करना उस पर वाजिब है ।
मस्बूक किसे कहते हैं ?
मस्बूक उस शख्स को कहते हैं जो ज़मात की नमाज में शामिल तो हो गया लेकिन , उस की एक, दो या कई रकातें बाकी हैं (यानी छूट गई हैं)
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आखिरी बात
दोस्तों उम्मीद है कि आपको सज्दा सहव का तरीका हनफी (Sajda Sahw ka tarika Hanafi) का बयान जरूर पसन्द आया होगा । इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ भी जरूर शेयर करें और ऐसे ही मज़ीद पोस्ट की नोटिफिकेशन पाने के लिए हमें सोशल मीडिया पर Follow करना न भूलें । मैं आपसे फिर मिलूंगा अगली पोस्ट में तबतक के लिए अल्लाह हाफिज़ !