Motivational Islamic Waqia In Hindi
एक बार हुजूर अकरम हजरत मुहम्मद मुस्तफा (स.अ.व) के दरबार में एक सहाबी आया । और अर्ज़ करने लगा “या रसुल्लूल्लाह मेरा बाप मेरे माल को खर्च कर देता है और मुझसे पूछता भी नहीं !” तो आपने कहा - बुलाओ उसे । उस बूढ़े बाप को जब बुलाया गया तो उसने पूछा “या रसुल्लाह (स.अ.व) आपने मुझे क्यों बुलाया ?”
रसूलुल्लाह (स.अ.व) ने जवाब दिया “तेरे बेटे ने शिकायत की है ।” ये सुनकर उस बूढ़े बाप को इतना दुख हुआ कि उन्होंने दिल ही दिल में चन्द जुमले पढ़े [ ज़बान से नहीं सिर्फ दिल ही दिल में ] और मजलिस में आ गए ।
जब वो सहाबी दरबार-ए-रिसालत में पहुँचे तो हजरत जिब्रिल (अलैहिस्सलाम) आ गए । आकर उन्होंने हुजूर (स.अ.व) से फरमाया - “या रसूलुल्लाह ! अल्लाह तआला कह रहे हैं कि इसका मसला बाद में सुनें पहले इससे वो जुमले सुनिए जो इसने अपने बेटे के ग़िले में दिल ही दिल में कहा है, भले ही इसने ज़बान से नहीं कहा लेकिन खुदा ने उसे सुन लिया है ।” तो आप (स.अ.व) ने फरमाया - “अच्छा भई ! मैं तुम्हारी बात बाद में सुनूँगा, पहले मुझे वो जुमले सुनाओ जो तुने अपने दिल ही दिल में कहा था ।” वो बूढ़ा आदमी कहने लगा “अशहदुअन्नका रसूलुल्लाह !” मैं गवाही देता हूँ कि आप अल्लाह के रसूल हैं । या रसूलुल्लाह (स.अ.व) मैंने दुख में चन्द जुमले अपनी ज़बान से नहीं बल्कि दिल ही दिल में दोहराया था और उसे आपके रब ने अर्श पर सुन लिया । वाकई आपका रब भी सच्चा है और आप भी सच्चे हैं ।” आप (स.अ.व) ने उससे पूछा - तूमने क्या कहा था ?
इसके जवाब में उस बुढ़े आदमी ने कुछ जुमले कहे । जिस के बाद हुजूर (स.अ.व) के आँखों में आंसू आ गए ।
उस बूढ़े बाप ने ये कहा था : मेरे बेटे ! जिस दिन तू पैदा हुआ उस दिन से मैंने अपनी ज़ात के लिए जीना छोड़ दिया । हमने तेरे लिए अपनी ज़िन्दगी का सफर शुरू किया । तुझे ठंडी छाँव में बिठाने के लिए मैं गर्म हवाओं से लड़ा और बर्फीली रातों में काम किया । तेरी एक मुस्कुराहट देखने के लिए सारी रात तड़पा । रातों में भी कोल्हू के बैल की तरह काम करके अपनी जवानी का सारा रस निचोड़ कर तेरी हड्डियों में डाल दिया । मैं बूढ़ा हेता गया और तू परवान चढ़ता गया । मेरी कमर झुक गई तेरी कमर उठ गई । मेरी टांगों से जान निकल गई और तेरी टांगें मज़बूत हो गईं । मेरे हाथ कांपने लगे, तेरे हाथ मज़बूत होते गए । मैं लड़खड़ाने लगा, तू इतराने लगा तो मुझे ख्याल आया कि जैसे मैं इसके लिए धक्के खाता था, इसकी ज़िन्दगी की दुआएं माँगता था, इसके लिए तडपता था, चलो आज ये मेरा सहारा बनेगा । लेकिन... जब तुझमें जवानी की लहर दौड़ी और मुझे बुढ़ापे ने खा लिया ।
जब जवानी ने तुझ में रंग भरा और बुढ़ापे ने मेरे रंग छीन लिए , जब जवानी ने तुझे सीधा कर दिया और बुढ़ापे ने मुझे टेढ़ा कर दिया , और जब मेरी कमर झुक गई , तो तेरी आंखें माथे पर चढ़ गई और तू मुझे यूं देखने लगा जैसे मैं नौकर हूं और तू मेरा मालिक । मैंने अपनी 30 सालों की जिंदगी को झुठला दिया कि हां मैं नौकर ही सही , तू ही मेरा बाप है तू ही मेरा सरदार है ।
अगर तू बेटा होता तो मेरे साथ ऐसा ना करता । तूने मेरे रातों के तड़पने को भुला दिया । मेरे गर्मियों और सदियों से लड़ने को भुला दिया । कोल्हू के बैल की तरह मेरे चक्कर काटने को भुला दिया । मैंने अपनी खुशियों को अपने सीने में दफन कर दिया । अपने सीने को अपनी ही खुशियों का कब्रिस्तान बना दिया और आज तू मुझसे ऐसे बात करता है जैसे मैं नौकर हूं और तू मेरा आका है ।
अच्छा मेरे बेटे ! मैं नौकर ही सही और तू ही मेरा आका है । लेकिन मैं तेरा पड़ोसी तो हूं । लोग अपने पड़ोसी को भी पूछ ही लेते हैं । कम से कम तू मुझसे इतना ही पूछ लिया कर ।
यह सुनना था कि प्यारे नबी (स.अ.व) की रोते रोते हिचकियां बंध गईं और उन्होंने उस बूढ़े बाप के बेटे का गिरेबान पकड़कर कहा : " दफा हो जाओ यहां से । मेरी नजरों से दूर हो जाओ । तेरा सब कुछ तेरे बाप का है , और वही बाप आज तेरे हाथों जलील हो रहा है ।"
इस्लामिक वाकिया : आखिरी बात
मेरे दोस्तों ! आज के दौर में बच्चे अपने वालिदैन के नाफरमान होते जा रहे हैं । ज़रा ज़रा सी बात पर नाराज़गी ज़ाहिर कर देते हैं । और यह भूल जाते हैं कि उनके वालिदैन ने कितनी मशक्कत के साथ उन्हें पाला होगा ? हम सब यह जानते हैं कि मां के कदमों तले जन्नत है और बाप जन्नत का दरवाजा है , लेकिन इसका असल मतलब यह है कि मां-बाप की खिदमत करके ही हमें जन्नत मिल सकती है ।
अगर हम में से कोई अपनी मां को नाराज़ करके मरा तो उसके लिए जन्नत नहीं है , और अगर हममें से कोई अपनेे बाप को नाराज़ करके मरा तो उसके लिए जन्नत का दरवाज़ा खुल न सकेगा । इसीलिए हमें चाहिए कि हम अपने मां बाप का फरमाबरदार बन कर रहें , और उनकी जरूरतों का पूरा ख्याल रखें ।
उम्मीद है कि आपको आज का यह पोस्ट जरूर पसन्द आया होगा । इसे अपने तमाम दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ जरूर शेयर करें । मैं आपसे फिर मिलूंगा एक नए पोस्ट में , तबतक के लिए, अल्लाह हाफिज़ !