एक इबरतनाक वाकिया
मज़हब-ए-इस्लाम से बेइंतहा नफरत करने वाला एक शख्स कभी मस्जिद को बम से उड़ा देना चाहता था लेकिन अब उसने खुद ही इस्लाम कबूल कर लिया।
‘द संडे प्रोजेक्ट’ नामक टॉक शो से “रिचर्ड मैकिने” नाम के एक शख्स ने अपनी अनोखी कहानी शेयर की है।
रिचर्ड मैकिने इंडियाना के रिटायर्ड मैरीन अफसर हैं । हर रोज़ काम से घर लौटने के बाद शराब की लत (एल्कोहल एडिक्शन) से लड़ रहे रिचर्ड मैकिने के मन में मुस्लिमों के खिलाफ पूरी तरह नफरत फैल चुकी थी ।
रिचर्ड ने बताया की, एक दिन वह अपनी पत्नी के साथ एक दुकान में पहुंचे और वहाँ काले बुर्के (नकाब) में दो औरतों को देखा, ये देखकर उन्हें गुस्सा आ गया और उन्होंने दुआ मांगी कि मुझे इतनी ताकत मिले कि मैं उनके पास जाऊं और उनकी गर्दन तोड़ दूं ।
लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि इससे भी ज्यादा खतरनाक प्लान बनाया । वह घर में बम बनाने की सोच रहे थे और इस्लामिक सेंटर के बाहर बम रखकर उसे उड़ाने का ख्वाब देख रहे थे ।
रिचर्ड ने सोचा था कि वह दूर से बैठकर उस भयानक मंजर को देखेंगे । रिचर्ड ने बताया —
“मैं 200 से ज्यादा लोगों को मारने और घायल करने की योजना बना चुका था । इस्लाम के प्रति नफरत ही मुझे जिंदा रखे हुए थी।”
इसी बीच, मैकिने ने मुस्लिम समुदाय को एक और मौका देने के बारे में सोचा। वह पास के इस्लामिक सेंटर गए और वहां उन्हें एक कुरान दी गई । वे उसे घर ले गए और पढ़ने लगे ।
8 सप्ताह बाद वह इस्लाम में धर्मांतरण कर चुके थे । और कुछ सालों बाद वह उसी इस्लामिक सेंटर के अध्यक्ष बन गए जिसे वह कभी बम से उड़ाना चाहते थे। (सुभहान’अल्लाह)
किसी को भी इतने इस बात पर यकीन नहीं होता लेकिन मैकिने ने इंटरव्यू में अपने इस बदलाव की पूरी कहानी बताई। उन्होंने बताया, एक दिन मैं घर पर दूसरे समुदाय, उनके विश्वास और उनकी नस्ल के बारे में गंदी-गंदी बातें बोल रहा था, तभी मेरी बेटी ने मुझे बहुत ही हिकारत भरी नजरों से देखा। उसके बर्ताव ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया।
जैसे एक प्रकाश का दीया जल गया हो, मैंने देखा कि मैं अपनी बेटी के साथ क्या कर रहा हूं, मैं अपने पूर्वाग्रहों को उसे सिखा रहा था। मैकिने ने बताया कि न्यूजीलैंड में क्राइस्टचर्च में मस्जिद पर हुए आतंकी हमले के दोषी ब्रेन्डन टैरेंट के भीतर वह अपने पुराने मैकिने को देख रहा था।
मैकिने ने कहा: “जिसने ऐसा घृणित अपराध किया, जिसने कई मासूमों की जान ली, वह मैं ही था। हम एक ही तरह के लोग हैं। जब मस्जिद में लोगों ने उसका मुस्कुराकर स्वागत किया तो उसने रुककर सोचा नहीं। जबकि मैं इस्लामिक सेंटर में जब गया था तो मेरा अभिवादन एक मुस्कुराहट के साथ किया गया था, इसने मुझे थोड़ा बहुत पिघला दिया। इससे मैं पहले से ज्यादा खुले दिमाग से सोचने में कामयाब हो गया और फिर मैंने दूसरों को सुनना शुरू कर दिया। लेकिन उसने (न्यूजीलैंड के हमलावर) ने ऐसा नहीं किया।
— रिचर्ड मैकिने (रिटायर्ड मरीन ऑफिसर, रिवर्टेड मुस्लिम)
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हम आपसे फिर मिलेंगे अगली पोस्ट में तबतक के लिए - अल्लाह हाफिज़ !