देवबन्द से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी
देवबंद यूपी के सबसे मशहूर और संवेदनशील जिलों में से एक है । आबादी के लिहाज से तो यह एक छोटा शहर है लेकिन अपने आप में इसकी एक बेहतरीन तारीख़ है । इसी शहर में है दारुल उलूम देवबन्द । जी हां ! यह एक ऐसी जगह है जिसने देवबंद को दुनियाभर में एक खास पहचान दी है । आज हम आपको बताने वाले हैं दारुल उलूम देबन्द से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें :-
दारुल उलूम देवबन्द
दारुल उलूम देवबन्द इस्लामी मज़हबी तालीम और इस्लाम के प्रचार व प्रसार के लिए दुनिया भर में मशहूर है । लोग इस मदरसे को मदरसों की मां भी कहते हैं । यह मदरसा खास तौर पर अरबी और इस्लाम मज़हब की तालीम देने वाला दुनिया का दूसरा और एशिया का सबसे बड़ा मदरसा है । यह आपसी मुहब्बत , गैरमज़हबी और मुल्क से वफादारी का एक अनोखा नमूना पेश करता है ।
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दारुल उलूम देवबन्द की शुरूआत कब हुई ?
दारुल उलूम देवबन्द कितना मशहूर है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देवबंद शहर को दारुल उलूम देवबन्द के नाम से पहचाना जाता है । इस मदरसे की शुरूआत 30 मई 1866 में हाजी आबिद हुसैन (रह•अ•) व मौलाना कासिम नानौतवी (रह•अ•) ने की थी । यहां दाखिला लेने के लिए एक लिखित इम्तिहान और इंटरव्यू से गुजरना पड़ना है ।
इस मदरसे की स्थापना का मकसद क्या था ?
दारुल उलूम देवबन्द की स्थापना अंग्रेज हुकूमत को देश से निकाल फेंकने के मकसद से की गई थी। आजादी के तहरीक में यहीं से दुनियाभर में मशहूर तहरीक-ए-रेशमी रुमाल की शुरुआत हुई थी ।
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तहरीक ए रेशमी रुमाल क्या है ?
तहरीक ए रेशमी रुमाल ने फिरंगियों के दांत खट्टे कर दिए थे । इसके तहत रेशमी रुमाल पर खास पैग़ाम लिखकर एक दूसरे को भेजे जाते थे । रेशमी रुमाल पर पैग़ाम लिखा टुकड़ा आज भी यहां हिफाज़त से रखा गया है ।
दारुल उलूम देवबन्द मदरसे में दी जाने वाली सुविधाएं
दारुल उलूम देवबन्द में तालीम हासिल करने वाले तालिबे इल्मों की तादाद तकरीबन साढ़े तीन हजार है । हिन्दुस्तान के बाहर से भी यहां लोग तालीम लेने आते हैं । खास बात यह है कि यहां के तालिबे इल्मों को रहने-खाने और पढ़ने की सभी इंतज़ामात मुफ्त में दी जाती हैं । आज यहां इस्लाम मज़हब , अरबी-उर्दू की तालीम के साथ-साथ हिन्दी, इंग्लिश और कंप्यूटर भी सिखाया जाता है । यही नहीं , दारुल उलूम देवबन्द में दर्ज़ी , किताबों पर जिल्दबन्दी और किताबत यानी हस्तलेखन भी सिखाया जाता है । इसके अलावा मौलवियत की मुखतलिफ डिग्रियां भी दी जाती हैं, जिनमें मौलाना और दारुल इफ्ता भी शामिल हैं ।
इंतजामिया के सख्त कानून
दारुल उलूम देवबन्द के कंपाउण्ड के भीतर किसी भी तरह की तस्वीरें लेने पर पाबन्दी है । यही नहीं, यहां पढ़ने वाले छात्रों को किसी भी तरह का मोबाईल फोन इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है । पिछले कुछ सालों से मदरसे के इंतजामिया ने ये नियम कड़ाई से लागू किए हुए हैं । हाल ही में कुछ छात्रों के पास मोबाईल मिले थे , जिसके बाद उन्हें मदरसे से बाहर कर दिया गया था ।
दारुल उलूम देवबन्द के फतवे
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दारुल उलूम देवबन्द खुद से कोई फतवा जारी नहीं करता है , बल्कि यहां आने वाले सवालों के जवाब में अपनी राय जाहिर करता है । दारूल उलूम दवबन्द ने सिर्फ गोकशी (गौहत्या) और आतंकवाद पर ही खुद से फतवे जारी किए हैं । दारुल उलूम आतंकवाद की कड़ी निंदा करता है । यहां जिस भी मौज़ू पर जो आदमी जवाब तलब करता है उसे सरेआम नहीं , बल्कि लिखित फतवा जारी किया जाता है । अलग-अलग मौज़ू पर दारुल उलूम देवबन्द खुले तौर पर फतवा जारी करता है ।
दारुल उलूम देवबन्द का किताबघर
दारुल उलूम कंपाउण्ड के भीतर एक बहुत बड़ा और आलिशान किताबघर है जहां अनेक पुराने ग्रंन्थों को जमा करके रखा गया है । इनमें कुरान पाक के साथ-साथ रामायण, भगवद् गीता, ऋग्वेद सहित चारों वेदों और कई हिन्दू ग्रंथों की प्रतियां मौजूद हैं । मुगल बादशाह औरंगजेब (रह०अ०) की लिखी कुरान मज़ीद भी यहां हिफाज़त से रखी गई हैं । इसके अलावा बाईबल के उर्दू तर्जुमे को भी यहां सहेज कर रखा गया है ।
दारुल उलूम देवबन्द की खास बातें :
- दारूल उलूम देवबन्द , उत्तरप्रदेश के देवबन्द में मौजूद है ।
- यह दुनिया का दूसरा और एशिया का सबसे बड़ा मदरसा है ।
- इस मदरसे ने मुहब्बत के पैग़ाम को दुनियाभर में पहुंचाया है ।
- इस मदरसे की स्थापना अंग्रेजों को देश के बाहर निकाल फेंकने के उद्देश्य से की गई थी ।
- यहीं से तहरीक-ए-रेशमी रुमाल तहरीक की शुरूआत की गई थी ।
- यहां रहना-खाना , पढ़ना , लिखना बिल्कुल मुफ्त है ।
- मदरसे में मज़हबी तालीम के साथ-साथ दूसरे काम भी सिखाए जाते हैं ।
- यहां फोन रखना और तस्वीरें लेना मना है ।
- मदरसे के कंपाउड के भीतर एक बहुत बड़ा किताबघर है ।
- दारुल उलूम देवबन्द ने मज़हबे इस्लाम का परचम दुनियाभर में लहराया है ।
आखिरी बात
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