Iman Kya hai? Iman e Saleha kya hai? Jinnat kon hain?

ईमान और ईमाने सालेहा क्या है ? जिन्नात कौन हैं ? इबादत का क्या तरीका है ?

ईमान किसे कहते हैं ?

ईमान उसे कहते हैं कि : (1) खुदा तआला और (2) उसकी सारी शिफतों (खूबी) और (3) फरिश्तों और (4) आसमानी किताबों और (5) पैगंबरों को दिल से तस्दीक करे (सच जाने) । और (6) जो बातें हजरत मुहम्मद मुस्तफा (ﷺ) खुदा की तरफ से लाए हैं उनको सच्चा समझे और ज़बान से उन सारी बातों का इकरार करे ।

यही तस्दीक और इकरार "ईमान" की हकीकत है । लेकिन इकरार किसी जरूरत या मजबूरी के वक्त साक़ित हो जाता है । जैसे : गूंगे आदमी का ईमान ज़ुबानी ईकरार के बग़ैर भी मोतबर है ।

आमाले सालेहा किसे कहते हैं ? 

आमाले सालेहा के माने हैं "नेक काम" । जो इबादतें और नेक काम खुदा तआला और उसके पैगंबरों ने मख़्लूक़ को सिखाया और बताया है वो सब आमाले सालेहा कहलाते हैं ।

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क्या इबादतें और नेक काम भी ईमान की हक़ीक़त में दाख़िल है ? 

हां ! ईमान कामिल में आमाले सालेहा दाख़िल हैं । आमाले सालेहा से ईमान में रोशनी और कमाल पैदा हो जाता है । और आमाले सालेहा न हो तो ईमान नाक़िस रहता है ।


इबादत के क्या मतलब हैं ? 

इबादत बन्दगी करने को कहते हैं । जो बन्दगी करे उसे 'आबिद' और जिसकी बन्दगी की जाए उसे माबूद कहते हैं । हमारा सबका सच्चा और हकीकी माबूद वही एक खुदा है जिसने हमें और सारी दुनिया को पैदा किया है । और हमसब उसके बन्दे हैं । उसने हमें अपनी इबादत का हुक्म दिया है इसीलिए हमारे जिम्मे उसकी इबादत करना फर्ज़ है ।


खुदा तआला ने अपनी मख़्लूक़ में से किस-किस मख़्लूक़ को इबादत का हुक्म दिया है ?

आदमियों और जिन्नों को इबादत करने का हुक्म दिया गया है । इन्हीं दोनों को मुकल्ल्फ़ कहते हैं । फरिश्ते और दुनिया के बाकी जानदार इबादत के मुकल्लफ़ नहीं है ।


जिन्न या जिन्नात कौन हैं ? 

' जिन्न ' भी खुदा तआला की एक बड़ी मख़्लूक़ है जो आग से पैदा हुई है । जिन्नों के जिस्म ऐसे लतीफ़ हैं कि हमें नज़र नहीं आते । लेकिन जब वो किसी आदमी या जानवर के शक्ल में हो जाते हैं तो नज़र आने लगते हैं । अपनी शक्ल बदलने और आदमियों या जानवरों की शक्ल में आ जाने की ताकत उन्हें खुदा तआला ने ही दी है । उनमें मर्द भी हैं और औरतें भी । उनकी औलादें भी होती हैं ।


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इबादत करने का क्या तरीका है ? 

इबादत करने के बहुत से तरीके हैं । जैसे :

  1. नमाज़ पढ़ना 
  2. रोज़ा रखना 
  3. ज़कात देना 
  4. हज करना 
  5. कुर्बानी करना 
  6. एतकाफ़ करना 
  7. अच्छी बातों को फैलाना 
  8. मख़्लूक़ को नेक बातों की हिदायत करना 
  9. बुरी बातों से रोकना 
  10. मां-बाप और बुजुर्गों का इज्जत और अदब करना 
  11. मस्जिद बनाना 
  12. मदरसा जारी करना 
  13. दीन का इल्म पढ़ना 
  14. दीन का इल्म पढ़ने वालों की मदद करना 
  15. खुदा के रास्ते में खुदा के दुश्मनों से लड़ना 
  16. गरीबों की जरूरत पूरी करना 
  17. भूखों को खाना खिलाना और 
  18. प्यासों को पानी पिलाना , वगैरह ।

और इन सबके अलावा भी ऐसे सारे काम इबादत में दाख़िल हैं जो खुदा के हुक्म और मर्ज़ी के मुवाफिक़ हों । और इन्हीं कामों को आमाले सालेहा कहते हैं ।


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Muhammad Saif

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