क्या इस्लाम ताकत के बल पर फैला ?
दोस्तों, आज के इस पोस्ट में मैं एक बेहद खास विषय पर अपनी बात रखना चाहूंगा , जिसे लेकर हमारे कुछ गैर-मुस्लिम भाई अकसर सवाल किया करते हैं । ये विषय है "इस्लाम के फैलने का" । हमने अकसर ये देखा है कि बहुत से लोग यह कहते हैं कि इस्लाम तलवार के वजह से फैला है । और इसे सुनना तब और हैरान कर देता है जब कोई इतिहासकार इस तरह की बातें कहता है ।
इस आर्टिकल में मैं उनकी गलतफहमी को दूर करने की पूरी कोशिश करूंगा । इसे पढ़ने के बाद ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि उन्हें भी इस सवाल का जवाब मिल सके , जिन्होंने अपने मन में इस तरह की गलतफहमी पाल रखी है ।
कुछ गैर-मुस्लिम भाई (Non Muslim Brothers) यह शिकायत करते हैं कि पूरी दुनिया में इस्लाम के माननेवाले लोगों की संख्या करोड़ों में कभी नहीं होती यदि इस मज़हब को ताकत के दम पर जबरदस्ती नहीं फैलाया गया होता ।
एक बेबुनियादी और काल्पनिक बात पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया गया है जो इस्लाम के फैलने को तलवार से जोड़ता है । अपने स्वार्थ और सियासत से प्रेरित इस झूठी बात को इतिहास की कई किताबों और मीडिया समूहों ने सच बता दिया है । [अफसोस !] जबकि इसके कोई मायने ही नहीं हैं ।
हिन्दुस्तान में कई अलगाववादी विचारधारा वाले कट्टपंथी नेताओं ने इस बात का बतंगड़ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है । वो ये अच्छी तरह जानते हैं कि ये बात बिल्कुल झूठी है । किसी को जबरदस्ती किसी विचारधारा को अपनाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है । फिर भी वो इस झूठ का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं । क्योंकि , वो इसके ज़रिये लोगों को धर्म के नाम पर बांट कर चुनावों में वोट लेना चाहते हैं ।
हम ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि नफरत की सियासत को फलने-फूलने के लिए किसी सहारे की जरूरत होती है । और वो सहारा है - "मज़हब" ।
जी हां ! मज़हब ही वो हथकंडा है जिसके नाम पर लोगों की भावनाओं को भड़काकर और उन्हें पीड़ित बनाकर आसानी से वोट हासिल किया जा सकता है ।
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आइये , अब हम आगे बढ़ते हैं और उन विषयों पर नज़र डालते हैं जिसे जानना ज्यादा जरूरी है —
इस्लाम का अर्थ शान्ति है
इस्लाम शब्द ‘सलाम’ से निकला है जिसका मतलब है “शान्ति" । इसका दूसरा मतलब यह भी है " अपनी ख्वाहिशों को अपने ख़ुदा के हवाले कर देना" । यानी उसके बताए हुए रास्तों पर चलना । इस तरह , इस्लाम का असल मतलब है : शांति का धर्म ।
शान्ति एवं बल-प्रयोग
इस संसार का हर इंसान अमन-चैन का पक्षकार नहीं है । हमारे अपने ही समाज के बहुत से लोग अपने गन्दे और घटिया विचारों को पूरा करने के लिए शान्ति भंग करने का प्रयास करते हैं ।
वहीं दूसरी ओर , कभी-कभी अमन बहाल करने के लिए भी बल का प्रयोग करना जरूरी हो जाता है । जैसा कि हम आए-दिन अखबारों और मीडिया चैनलों में यह देखते हैं कि अपराधियों और असामाजिक लोगों के खिलाफ हमारी पुलिस का बल प्रयोग करती है ।
इस्लाम एक ऐसा मज़हब है जो शान्ति को बढ़ावा देता है । और जहां कहीं भी किसी पर जुल्म होता है तो वह अपने मानने वालों को इस जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए प्रोत्साहित करता है ।
जुल्म के खिलाफ लड़ाई में कभी-कभी ताकत का इस्तेमाल करना जरूरी हो जाता है । इस्लाम में ताकत का इस्तेमाल सिर्फ अमन और इंसाफ कायम करने के लिए ही किया जा सकता है । किसी को डराने , धमकाने या जबरन इस्लाम कुबूल करवाने के लिए नहीं !
इतिहासकार डीलेसी ओ-लेरी के विचार
मज़हबे इस्लाम तलवार यानी ताकत के बल पर फैला है , इस ग़लत धारणा का सबसे बेहतरीन जवाब मशहूर इतिहासकार डीलेसी ओ-लेरी (De Lacy O’Leary) ने अपनी किताब “इस्लाम ऐट दी क्रॉस रोड” (Islam at the cross roads) 1923, पेज नं० 08 में दिया है –
यह कहना कि कुछ जुनूनी मुसलमानों ने दुनियाभर में फैलकर हारने वाली कौम को तलवार के जरिये मुसलमान बनाया, इतिहास इसे साफ तौर पर स्पष्ट कर देता है कि यह कोरी बकवास है और उन झूठी मनगढ़त बातों में से एक है जिसे इतिहासकारों ने कभी दोहराया है ।”
— De Lacy O’Leary
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मुसलमानों ने स्पेन पर 800 सालों तक हुकूमत की
मुसलमानों ने स्पेन पर तकरीबन 800 सालों तक हुकूमत किया और वहां पर उन्होंने कभी किसी को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर नहीं किया ।
हालांकि वो आने वाले दूसरे हालात से पूरी तरह बे खबर थे । जिसका नतीज ये हुआ कि बाद में ईसाई लड़ाकों ने स्पेन में प्रवेश कर मुसलमानों से जंग करनी शुरू कर दी । और अपनी ताकत के बल पर उन्होंने स्पेन से मुसलमानों को पूरी तरह खत्म कर दिया । आगे चलकर हालात ऐसे हो गए कि वहां खुले तौर पर अज़ान देने वाला एक भी मुसलमान बाकी न रहा। जिन्होंने उनसे लड़ाईयां की वो हारने के बाद मार दिए गए और जिन्होंने उनका साथ दिया उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया ।
ये घटना भी इस बात की गवाह है कि किस तरह 800 सालों की हुकूमत के बावजूद किसी को तलवार के नोक पर इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर नहीं किया गया था ।
अरब मुल्कों में ईसाईयों का वजूद
तारीख़ के मुताबिक अरब की सरज़मींन पर करीब 400 सालों तक मुसलमानों की हुकूमत कायम रही । कुछ सालों तक वहाँ ब्रिटिशों का हुकूमत रहा और कुछ सालों तक फ्रांसीसियों ने हुकूमत किया ।
लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि , 400 सालों की इस्लामी हुकूमत और मुसलमानों की एक बड़ी तादाद होने के बावजूद आज भी अरब में करीब 1 करोड़ 40 लाख लोग ईसाई हैं । (कैसे?)
अगर मुसलमानों ने तलवार का इस्तेमाल किया होता तो वहाँ एक भी अरब मूल का ईसाई बाक़ी नहीं रहता ।
अरब भूमि पर पर्याप्त संख्या में ईसाई सम्प्रदायों की मौजूदगी यह संकेत करती है कि इस्लाम लोगों पर थोपा नहीं गया था।
भारत में 80% से अधिक ग़ैर-मुस्लिम
मुगल बादशाह , जो मुसलमान थे । उन्होंने हिन्दुस्तान पर तकरीबन 1000 सालों तक हुकूमत की । अगर वे चाहते तो हिन्दुस्तानी अवाम को इस्लाम अपनाने पर मजबूर कर सकते थे ,क्योंकि उनके पास ताकत थी । मगर 1000 सालों की हुकूमत के बावजूद आज भी भारत की 80 प्रतिशत अवाम गैर-मुस्लिम हैं ।
अभी-अभी हिन्दुस्तान में 80 % गैर-मुस्लिम अवाम का होना इस बात की गवाही देता है कि इस्लाम तलवार के बल पर नहीं फैला ।
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इन्डोनेशिया और मलेशिया
इन्डोनेशिया (Indonesia) दुनिया का एक ऐसा देश है जोे दुनिया के सबसे ज्यादा मुसलमानों का घर है । वहीं , मलेशिया (Malaysia) में भी मुसलमान बहु-संख्यक हैं ।
इतिहास से इस बात का पता चलता है कि इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे मुल्कों में इस्लामी सेनाएँ कभी गई ही नहीं । इस्लाम वहाँ समुद्री रास्तों से पहुँचा ।
इसने वहां के लोगों की रीति-रीवाजों में अपने लिए जगह बनाई और लोगों के दिलों में अपने आप को बैठा लिया । लेकिन इसने वहां के रीति-रीवाजों, पहनावा, खानपान और भाषा को नहीं बदला ।
इन सारी बातों के बजाए यहाँ एक नई समाजी एकता पैदा हुई जिसने इस्लाम का एक नया रूप दुनिया के सामने रखा, जिसमें पश्चिमी मुल्कों की तालीम और वहां के आम रीति-रीवाज शामिल थे ।
इस्लामी इतिहास इस बात का गवाह है कि जहां-जहां इस्लाम आता गया, वहां के लोग इसे अपनाते चले गए , और वो लोग आज भी उसी तरह इस्लाम को अपनाए हुए हैं । इस तरह इस्लाम ने न केवल उनकी जमीन पर जीत हासिल की, बल्कि वहां के लोगों के दिलों में भी अच्छी तरह बस गया ।
अफ्रीक़ा में इस्लाम का फैलना
इसी तरह इस्लाम पूरी तेजी से अफ्रीक़ा के पूर्वी तट पर फैल गया । ऐसे में जो लोग ये कहते हैं कि इस्लाम तलवार के बल पर फैला है , उनसे मेरा यह सवाल है कि, वो कौन सी मुस्लिम सेना है जो अफ्रीका के पूर्वी तट की तरफ गई थी ?
थॉमस कारलायल (Thomas Carlyle) के विचार
मशहूर इतिहासकार थॉमस कारलायल (Thomas Carlyle) ने अपनी किताब हीरोज़ एंड हीरो वरशिप (Heroes and Hero Worship) में इस्लाम के फैलने से संबंधित ग़लत धारणा की तरफ़ इशारा करते हुए लिखा है —
तलवार !! और ऐसी अपनी तलवार तुम कहाँ पाओगे ? हकीकत तो यह है कि हर नई सोच अपनी शुरूआती हालत में सिर्फ़ एक की तादाद में होता है अर्थात् वह सिर्फ किसी एक इंसान के ख्याल में होता है । जहाँ यह अब तक है । पूरी दुनिया में केवल एक इंसान इस बात पर पर यकीन करता है यानी केवल एक इंसान सारे इंसानों के मुकाबले में होता है । अगर ऐसे में वह आदमी हाथ में तलवार लेकर प्रचार करने की कोशिश करता है, तो यह उसके लिए कहीं से भी फायदेमंद साबित नहीं होगा । सारे लोगों के खिलाफ आप अपनी तलवार उठाकर देख लीजिए । कोई भी बात खुद-ब-खुद फैलती
है जितनी वह फैल सकती है ।
Thomas Carlyle
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धर्म में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं होना चाहिए
क्या इस्लाम तलवार से फैला है ? कौन सी तलवार से फैला है यह ???
अगर ये तलवार मुसलमानों के पास होती तो , अब भी वो इसका इस्तेमाल इस्लाम के प्रचार के लिए करते । पवित्र कुरआन में साफ-साफ कहा गया है —
धर्म के मामले में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती न करो ! सच्ची बात, झूठ से (साफ़-साफ) अलग दिखाई देती है।
[ कुरआन पाक, 2:256 ]
बुद्धि की तलवार
यह अक्ल की ऐसी तलवार है जो दिलो-दिमाग पर जीत हासिल करती है। पवित्र कुरआन में लिखा है –
लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाओ, मगर अक्ल और अच्छी बातों के ज़रिये, और उनसे इस तरह से बहस (वाद-विवाद) करो जो सबसे अच्छा और शांत तरीका हो ।
(कुरआन, 16:125)
1954 से 1984 ई. के दौरान संसार के बड़े मजहबों में बढ़ोतरी
Readers Digest ने अपने एक लेख अलमेनेक (वार्षिक पुस्तक 1986 ई.) में संसार के सभी बड़े मज़हबों में तक़रीबन पचास सालों के दौरान हुई बढ़ोतरी का आंकलन किया था ।
यह लेख “प्लेन ट्रुथ’ (Plain Truth) नामक मैगजीन में भी प्रकाशित हुआ था जिसमें इस्लाम को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया था । क्योंकि पिछले पचास (50) सालों में इस्लाम के मानने वालों की बढ़ोतरी कुल 235 % हुई थी । जबकि दुनिया के सबसे बड़े मज़हब ईसाइयत में सिर्फ 47 % की बढ़ोतरी हुई थी ।
यहां पर ये सवाल उठता है कि इस दौरान कौन-सी जंग हुई थी जिसके वजह से करोड़ों लोगों को जबरन इस्लाम अपनाने को मजबूर किया गया ?
अमेरिका और यूरोप
इस्लाम ने यूरोपीय महाद्वीप के दिल में भी गहरे रास्ते बनाए हैं । पूर्वी यूरोप के बलकान राज्यों पर तुर्की के उस्मानी सुल्तानों की हुकूमत 600 सालों से भी ज्यादा वक्त तक रही है लेकिन अल्बानिया, बोस्निया और हर्जीगोबिना के लोगों के अलावा बाकियों ने इस्लाम नहीं अपनाया ।
आधुनिक दौर में इस्लाम का प्रसार
आज अमेरिका में सबसे ज्यादा तेजी से फैलने वाला मज़हब इस्लाम है । यही नहीं यूरोप में भी इस्लाम सबसे तेजी से फैल रहा है । पश्चिमी देशों के लोगों में भी इस्लाम का आकर्षण काफी तेजी से बढ़ा है ।
हजारों लोगों ने 11 सितम्बर की घटना के बाद से इस्लाम का खुद से अध्ययन किया और इस्लाम को अपनाया भी है । आखिर वो कौन-सी तलवार है जो हर रोज़ हजारों लोगों को इस्लाम अपनाने पर मज़बूर कर रही है ?
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आखिरी बात
उपर लिखे प्वाईंट्स से ये बात पूरी तरह साबित हो जाती है कि इस्लाम ने अपने कायदे-कानून, इंसाफ और शांति के वजह से लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई है । तलवार (ताकत) और इस्लाम के प्रसार का दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है । ये महज़ एक झूठी और काल्पनिक अवधारणा है , जो गलत तरीके से लोगों के मन में बिठा दी गई है । हमें यह नहीं भूलना चाहिए — सत्यमेव जयते । (सत्य की हमेशा जीत होती है ।)
अब जैसे जैसे लोगों को इस बात की सच्चाई का पता चलता जा रहा है , झूठे लोगों की सांसे फूलती जा रही है । और अब उन्होंने एक नये झूठ का प्रसार करना शुरू कर दिया है । वो झूठ हैं : (1) इस्लाम को महिला-विरोधी कहना (2) इस्लाम को हिंसात्मक साबित करने की नाकाम कोशिश करना और (3) इस्लाम को रूढ़िवादी बताना ।
लेकिन इंशाअल्लाह , बहुत जल्द मैं इन विषयों पर भी आपको सच्चाई से रूबरू करवाऊंगा । फिलहाल , इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें, और ऐसी ही पोस्ट की नोटिफिकेशन पाने के लिए हमें सोशल मीडिया पर Follow जरूर करें । (अल्लाह हाफिज़ ! )